मधुमक्खी पालन मेें उत्तर भारत में कांगड़ा पहले नंबर पर 

मधुमक्खी पालन मेें उत्तर भारत में कांगड़ा पहले नंबर पर 

यंगवार्ता न्यूज़ - कांगड़ा   25-07-2020

मधुमक्खी पालन में कांगड़ा जिला उत्तरी भारत में पहले पायदान पर जगह बनाए हुए है। यहां तीन हजार से ज्यादा परिवार मधुमक्खी पालन को तरजीह दे रहे हैं। इस व्यवसाय को रोजगार से जोड़कर यह परिवार लाखों रुपए की आय कमा रहे हैं। 

औसतन जिले में दो लाख किलो शहद का उत्पादन किया जा रहा है। वर्ष 1962 में नगरोटा अनुसंधान केंद्र में पहली विदेशी मधु मक्खी(एपिस मेलिफेरा) का राष्ट्रीय स्तर पर सफल ट्रायल हुआ था। 

इसके बाद इसे आगे बढ़ाते हुए देश के विभिन्न राज्यों में पंहुचाया गया था। 60 के दशक से हिमाचल में एपिस मेलिफेरा मधु मक्खी के अलावा कई और तरह की प्रजातियों का पालन जारी है, मगर कांगड़ा के इच्छी क्षेत्र में लोगों ने 70 के दशक से मधु मक्खी पालन को प्राथमिकता दी।

अकेले इच्छी के करीब 900 परिवार मधुमक्खी पालन कर रहे हैं। हालांकि किसानों को शहद की कीमत बेहद कम हासिल हो पाती है।

बताया जा रहा है कि कंपनियां इन किसानों को 150-200 रुपए प्रति किलो ही दिया जाता है, जबकि मार्केट में इसकी कीमत कहीं अधिक है। 

इसके अलावा कांगड़ा के खोली, नगरोटा, धर्मशाला, रैत व नूरपूर सहित अन्य क्षेत्रों में बड़े स्तर पर बी-कीपिंग की जा रही है। बागबानी विभाग मधुमक्खी पालन को बढ़ावा देने के लिए मधुमक्खी पालकों को प्रोत्साहन भी दे रहा है। 

विभाग द्वारा बक्से, मक्खी और उपकरण पर 80 फीसदी सब्सिडी दी जा रही है। हालांकि इस व्यवसाय को शुरू करने से पहने टे्रनिंग दी जा रही है।

मुख्यमंत्री मधु विकास योजना के तहत हर मुख्यालय पर विभाग की ओर से प्रशिक्षण शिविरों का भी आयोजन किया जा रहा है।

स्वरोजगार के इच्छुक बागबानों के लिए यह प्रशिक्षण अनिवार्य है। बी कीपिंग यूनिट के लिए एक व्यक्ति को अधिकतम 50 यूनिट तक पर 80 फीसदी तक सबसिडी बागबानी विभाग की ओर से दी जा रही है। विभाग मौन पालकों को आने वाली हर परेशानी से निपटने में भी सहायता कर रहा है।