हिमाचल में सेब की फसल में स्कैब रोग लगने से बागवान चिंतित
यंगवार्ता न्यूज़ - शिमला 10-08-2020
हिमाचल प्रदेश के सेब की लालिमा तो आपने देखी होगी, लेकिन इस बार सेब की खूबसूरती पर स्कैब ने दाग लगा दिया है। हिमाचल के ऊंचाई और मध्यम ऊंचाई वाले सेब के बागीचों में स्कैब रोग साफ देखा जा सकता है।
इससे बागवान बुरी तरह चिंतित हो उठे हैं। दरअसल सेब उनकी आर्थिकी का एकमात्र जरिया है। जिस पर स्कैब रोग की मार पड़ गई है।
जानकारी के मुताबिक 30 फीसदी सेब इस बार स्कैब की चपेट में हैं। पहले मजदूरों की कमी बागवान झेल रहे थे, अब स्कैब रोग के रूप में उन्हें एक और मार पड़ी है।
शिमला जिला के रोहड़ू, अप्पर नावर, जुब्बल के भगोली नाला, कोटखाई के बागी सहित कई ऐसे क्षेत्र हैं। जहां सेबों पर स्कैब साफ देखा जा सकता है. इन इलाकों के आसपास के इलाकों में भी इसी रोग के फैलने के सूचना है।
इसी तरह कुल्लू, मंडी और चंबा जिला में भी कई बागाीचों में स्कैब रोग फैला है. फल, फूल एवं सब्जी उत्पादक संघ के प्रदेश अध्यक्ष हरीश चौहान ने कहा कि पिछले एक-दो साल से स्कैब रोग बागीचों में देखा गया था, लेकिन इस बार बड़ी संख्या में सेब स्कैब की चपेट में हैं।
कई बागीचों में यह 70 से 80 फीसदी तक असर कर चुका है, जिससे सेब मार्केट में नहीं बिक पाएगा। बागवानी मंत्री महेंद्र सिंह ठाकुर ने कहा कि स्कैब रोग फैलने की उन्हें जानकारी मिली है।
जिसके बाद विभागीय टीमें फील्ड में भेजी गई हैं. स्कैब के प्रभाव का भी आंकलन होगा और इसका रोकथाम कैसे किया जा सकता है इसके उपाय भी बागवानों को बताए जाएंगे। उन्होंने कहा कि विभाग बागवानों की हरसंभव मदद करेगा।
हिमाचल में सेब में लगने वाला स्कैब रोग नया नहीं है. 1983 में भी यह रोग प्रदेश में सेब की रीढ़ तोड़ चुका है. उस वक्त पूरी सेब की फसल बर्बाद हो गई थी
बागवानों और वैज्ञानिकों ने मिलकर स्कैब पर रोक लगाई थी. जो जरूरी दवाइयां हैं, उनका छिड़काव भी किया था और तीन साल तक स्कैब से लड़ाई लड़ी गई।
फल, फूल एवं सब्जी उत्पादक संघ के अध्यक्ष हरीश चौहान ने मांगी की है कि सेब तुड़ान खत्म होते ही पोस्ट हार्वेस्टिंग मैनेजमेंट पर जोर दिया जाना चाहिए. ताकि सेब में आगे यह रोग न फैले। स्कैब रोग एक तरह का फंगस है।
यह ज्यादातर तब होता है जब जमीन में ज्यादा नमी हो. इससे फल और पत्ते पर बड़े आकार के काले धब्बे बन जाते हैं. वैज्ञानिक इसके लिए फंफूदनाशक स्प्रे करने की सलाह देते हैं। तौलियों में घास उगने नहीं दी जानी चाहिए और हवा-प्रकाश खुला आता रहे।
बागवानों ने सरकार से स्कैब रोग से ग्रसित सेब को मंडी मध्यस्थता योजना के तहत खरीदने की मांग की है। हालांकि यह सेब अब किसी काम का नहीं है. किंतु बागवान को नुकसान न हो। इसके लिए सरकार सेब को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदकर उसे नष्ट कर दें।
जैसा 1983 में स्कैब रोग फैलने पर किया गया था। बागवान हरीश चौहान ने कहा कि हिमफैड और एचपीएमसी पहले ही स्कैब ग्रसित सेब को खरीदने से मना कर चुके हैं। ऐसे में सरकार को अब आगे आकर कोई हल निकालना चाहिए।